बचपन इंसानी जिंदगी का सबसे खूबसूरत और रंगीन हिस्सा होता है ।
माँ कि गोद जन्नत हुआ करती थी। सर रखते ही सारी परेशानियाँ दूर हो जाती। तितलियां सहेली और जुगनू दोस्त थे, दिन भर दुनिया से बेखबर खेलने में गुज़र जाता। शाम को थके हुए जब घर आते, तो इंतज़ार में पलकें बिछाये दरवाज़े पर खड़ी माँ को देखकर सारी थकन दूर हो जाती। रात होते ही तारे आँख मिचोली खेलते और रात की ठंडक इस तरह सुला देती मानो बस इसी के लिए उदास हो। सुबह होती तो परिंदे गीत सुनाते, तरोताज़ा हवा की खुशबू पूरे दिन को मेहका देती। स्कूल जाते हुए पीठ पर टँगा बस्ता बेहतर मुस्तक़बिल को अपने रंगो से सजाती किताबों से भरा हुआ होता।
मेरा बचपन
मेरी जिंदगी का यह हसीन हिस्सा भी बहुत मज़ेदार रहा , मैंने भी अपना बचपन शहर की गलियों में गुज़ारा,हँसते मुस्कुराते,
खेलते हुए, पतंगों के पीछे नंगे पैर भागते हुए, बिल्कुल बेफिक्र बचपन। लेकिन इस बेफिक्री को भी कोई अहमियत देना सिखा ही देता है, परिवार के बाद मेरी कक्षा दो की क्लास टीचर विनीता पंत मेडम मुझे आज भी याद हैं। वो मुझे बिल्कुल अपनी सी लगती थीं, जिन्होंने किताबों के साथ-साथ असल जिंदगी का भी ज्ञान मुझे दिया।
मेरी पांचवीं पास करते ही इस अहसास ने ज़ोर पकड़ा कि मैं लड़की हूँ और लड़कियों को ज़्यादा नहीं पढ़ाते, बस हिसाब किताब के लिए इतना काफी है। जैसे ही विनीता मैम को यह पता चला तो उन्होंने मुझे मेरा रिजल्ट देने से साफ इंकार करते हुए कहा कि वह किसी घर के बड़े को ही मेरा रिजल्ट और टी सी देंगी।
गर्मियों की छुट्टी के बाद मेरे नाना जी मेरे साथ स्कूल गए, मेडम ने नाना जी को मेरा रिजल्ट दिखाते हुए कहा कि यदि इतने अच्छे अंको से पास हुई बच्ची को आप आगे नहीं पढाएंगे तो आप एक होनहार विद्यार्थी का भविष्य खराब होने के जिम्मेदार होंगे बिना पढाई के इंसान दिशाहीन है । उनकी बातों ने मेरे नाना जी को काफी मुतासिर किया। बस फिर क्या था मेरे नाना जी ने ठान लिया कि आगे पढ़ा ना है लड़की को और बोले की ऐसी बात है तो बताइये कौन सा स्कूल बेहतर रहेगा?
मैडम ने मुस्कुराते हुए एक पर्ची पर एक गर्ल्स स्कूल का नाम लिखकर दिया। नाना जी उसी दिन मुझे इंटर कॉलेज में दाखिले के लिए ले गए, लेकिन वहाँ जाकर पता चला कि एडमिशन बंद हो चुके हैं, मेरे नाना जी उनसे कहते हैं की ऐसे कैसे हो सकता है यह पर्ची पर आपके स्कूल का नाम ख़ुद एक मैडम ने लिख कर दिया है, वो अड़ गए कि नहीं दाखिला तो यहीं होगा, प्रिंसिपल मैडम ने मौके की नज़ाकत को देखते हुए मेरा एडमिशन कर दिया।
नये स्कूल में आकर मेरी सोच का दायरा और बढ़ गया ,
वहाँ से मैंने यह जानना शुरू कर दिया कि शिक्षा जिंदगी जीने की नई राह दिखाती है, अच्छा मुस्कबिल बनाती है, एक पहचान दिलवाती है, शिक्षा रोजगार के अवसर देती है, रूढ़िवादिता को पछाड़ कर एक नई सोच का विकास करती है, सही और गलत का अंतर बताती है।
आज का सफ़र अब जब मैं दुनिया के मसाईल में बुरी तरह फंस चुकी हूँ तो मुझे मेरा बचपन बड़ी शिद्दत से याद आता है। सोचती हूँ कि ऐसे बचपन को दुनिया में रहने वाले सब बच्चे क्यूँ नहीं जी सकते, वो सिर्फ कल्पना क्यों रह जाता हैं। यह हकीकत क्यों नहीं हो सकता ? आज जब में अपने आस पास देखती हूँ तो मुझे मेरे समाज के बच्चों का बचपन नज़र आता है। घने जंगलों में जन्में बच्चों का बचपन जिम्मेदारियों से बोझिल जिन्दगी गुजारता है। वह कोई बड़ा अफ़सर बनने के ख़्वाब पलकों में लिए ज़िंदगी का सफ़र शुरु नहीं करते। क्योंकि ऐसा तो वो सोचते हैं जो, मौसम की तरह बदलते दौर को देखते हैं, कई गुना तेज़ी से भागते वक़्त की रफ़्तार को महसूस करते हैं। क्योंकि वह कभी न तो घर की खिड़की से बाहर झांकते हैं और न ही बाहरी दुनिया से कोई ताल्लुक रखते हैं, इसकी मुख्य वजह ये है कि बच्चे शिक्षा से कोसों दूर हैं। इसके भी कुछ कारण हैं 1.जैसे कि यह मानसिकता कि हमने जिस तरह अपनी पूरी ज़िंदगी जंगलों में बिना शिक्षा के गुजार दी तो आगे आने वाली पीढ़ि भी इसी तरह अपना वक्त काट ही लेगी, 2.काम को तालीम से ज़्यादा अहम मानना, यह पढाई- लिखाई हमारे लिए नहीं बनी, 3.स्कूलों की दूरी भी घने जंगलों से जंगली जानवरों का खौफ़ बच्चों को स्कूल की पहुँच से दूर करता है, और यदि कोई इन सब से निकल कर शिक्षा तक अपनी पहुँच बना भी पाता है तो वह भी पांचवी या आठवीं तक ही पढ़ पाता है। क्योंकि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए संसाधनों और पैसों की ज़रूरत होती है जिसका अभाव तो है ही। साथ ही शिक्षा पर खर्च को ग़ैर जरूरी मानना भी सोच के अभाव को दर्शाता है। समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता का न होना भी एक बुनियादी मसला है।
तालीम का न होना लड़के और लड़कियों में असमानता का कारण बनता है। जबकि यहाँ पहले ज़रूरत है बदलाव की, साक्षरता की, क्योंकि शिक्षा किसी विशेष तबके या जाति के लिए नहीं होती। सबको साक्षर और शिक्षित होने का हक है। पढ़ा लिखा इंसान किसी भी चीज़ को बेहतर और तेज़ी से समझ सकता है। वह समाज को एक साथ रहने के लिए बेहतर जगह बना सकता है। वह बेहतर स्वास्थ्य के विकल्पों और सुविधाओं के बारे में जान सकता है।
तालीम सिर्फ आज के लिए ज़रूरी नहीं बल्कि बेहतर कल जरूरत बन चुकी है, और जरूरतें ख्वाहिशों पर भारी होती हैं। बच्चे खूबसूरत बचपन को तभी जी सकते हैं जब उसमें तालीम की रोशनी चारों और बिखरी हुई नज़र आये,सुबह स्कूल जाने की फ़िक्र हो, अपनों के साथ की खुशबू हमेशा मेहकती हुई महसूस होती रहे।
दीवारें नहीं देती तालीम उड़ानों की ,
इंसान को अपना आसमां ख़ुद बनाना पड़ता है ।
Written by Aamna Khatun
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