लाइब्रेरी के माध्यम से जब मैंने स्कूल में बच्चे पढ़ाने शुरू किए और जब मैं बच्चों से मिली तो बच्चे कुछ डरे और सहमे हुए थे। मैं उनके लिए अजनबी थी। ख़ैर जैसे-जैसे दिन बीतते गए और बच्चों से रिश्ता और पहचान बनती गई। हम क्लास रूम मैंजमेंट में “सन, मून और स्टार” की बात करते है उसी प्रकार कुछ बच्चे बड़े उत्सुक और कुछ चुपचाप से सुनते और बस चुप बैठे रहते। मेरी प्रत्येक बच्चे के प्रति समझ बन गई थी और मैं उनके सीखने के तरीकों को समझने लगी थी। बच्चों के साथ एक दोस्त का रिश्ता बन गया था और क्योंकि मैं इसी समाज से हूँ तो बच्चे मेरा साथ अपने रिश्ते जोड़ते है उदाहरण के लिए, "मैंने आज घर पूछा और मेरी मम्मी ने बताया आप मेरी मौसी लगती हो" कोई कहता “आप मेरी चाची है”। ये बातें मुझे अच्छी लगती थी कि बच्चे कैसे न कैसे मुझसे रिश्ता बना रहे है जिसका मतलब था के उन्होंने मुझे अपना लिया है।
मेरी समझ में जब हम बच्चों के लिए काम करते है तो बच्चों का आपके साथ जुड़ाव होना बहुत जरूरी है। हमने अपनी स्टोरी टाइम में बच्चों को मौका दिया आगे आकर अपनी कहानी सुनाने का जो कि शुरू में बच्चों के लिए बहुत भारी भरकम काम था और कोई एक बच्चा भी सामने आने को तैयार नही होता था। परंतु अब जैसे जैसे दिन बीतते गए और कहानियों का कल्चर बनता गया तो बच्चे अब खुद से अपनी बारी बिना डरे और उत्साह से कहानियाँ सुनाते है। आत्मविश्वास बच्चों की सीखने की प्रक्रिया के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि बच्चा अगर डरता रहा तो वो कभी सवाल नही करता और खुद से वो चीजों को जानने और समझने की कोशिश नहीं करेगा और अगर बच्चा खुद में आत्मविश्वास रखता होगा तो वो सवाल जरूर करेगा भले ही एक बार के लिए गलत हो लेकिन वो कोशिश करेगा।
By Aafreen
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