Community visit हमारे काम का ज़रूरी भाग है। इस बार की visit में मैं बच्चो से और उनके माता पिता से मिली। ऐसे एक घर में बात-चीत हो रही थी तो पता चला कि बच्चो के चाचा का घर भी पास में है। उनके चाचा की दो बेटी है जिनकी उम्र 9 साल और 5 साल हैं। मैंने उन लड़कीयो के माता से पूछा कि आपकी बच्ची किस स्कूल में जाती हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक कहीं नहीं जाती। मैं इन्हें घर पर ही पढ़ती हूँ। फिर मैंने उन बच्चों से बात की- "क्या आपका मन नहीं करता स्कूल जाने का?" उन बच्चियो ने बोला “बहुत करता है लेकिन हमारी मम्मी हमारा एडमिशन नहीं करा रही है।” मैंने उनकी माता जी से कारण पूछा- एडमिशन क्यों नहीं करवाती बच्चियों का? उन्होंने कहा कि- "बड़ी बच्ची का आधार कार्ड नहीं बना।" मैंने वजह जानने की कोशिश की जो आधार कार्ड नहीं बना तो उन्होंने काफी सारे बातें मुझे बताई लेकिन अंत में मैंने उनको एक सुझाव दिया कि पहले इसका जन्म प्रमाण पत्र बनवा कर इसका आधार कार्ड बनवाना और सरकारी स्कूल में दाखिला करवाना। मैंने उन्हें अपना नंबर दिया और समय समय पर उनसे बात करती रही। कुछ दिनों के बाद आधार कार्ड वाले स्कूल में आए फिर मैंने उनको कॉल किया। उस के बाद बच्ची का आधार कार्ड बना और तब मैंने उनको बोला कि “आप इसको स्कूल भेजो”। उस के बाद वह बच्ची स्कूल आने लगी और प्रतिभाग भी करने लगी। लेकिन उसके चेहरे पर मायूसी रहती थी। एक दिन मैंने पूछा कि- आप ऐसे मायूस क्यों बैठी हो? उस लड़की ने बताया कि मैडम सबकी हाजिरी बोलती हो पर मेरी क्यों नहीं बोलती? मैंने उसको समझाया की हाजिरी आपकी लगेगी जब आपका आधार कार्ड आ जाएगा। फिर वह बोलने लगी कि मुझे ड्रेस भी नहीं मिली? मुझे किताबें भी नहीं मिली? बच्ची के इस भाव को मैं समझ गई थी। उसे लिए कक्षा में और समावेशी अनुभव देने के लिए मैंने उसको एक किट और समानता की नोटबुक दी। वह दोनों चेज़ पा कर बहुत खुश हुई। अब वह रोज़ स्कूल आती है। वह बोलती है कि- “मेरा स्कूल में बहुत अच्छा मन लगता है अब मैं अपनी छोटी बहन को भी अपने साथ लाया करूंगी”। उस लड़की का नाम है वंदना(name changed) है और कक्षा दो में पढ़ती है।
Written by: Manju (Trainee Fellow)
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