पिछले कुछ समय से मैं अपने अनुभवों के बारे में लिखती आई हूँ लेकिन कोई भी सफलता हमे खुद महसूस होती है। मैं स्कूल में बच्चें पढ़ती हूँ और बच्चे की शिक्षा से जुड़े हितधारकों को अलग अलग प्रयासों से जोड़ती हूँ। हम बच्चें के माता पिता से भी एक रिश्ता बनाते है।
मैं बच्चों के माता पिता से मिलने अपने गुज्जर समुदाय में गई। जाने से पहले एक डर और झिझक थी। परंतु मुझे अपना डर और झिझक भी दूर करनी थी तो कहीं मन में छुपी उत्सुकता भी थी। मैं जब बच्चों के घर गई तो माता-पिता मुझे बड़ी गर्मजोशी के साथ मिले। अच्छी बात यह थी कि मुझे उन्हें अपना परिचय नहीं देना पढ़ा और ना ही अपने काम के बारे में बताना पढ़ा। सब माता पिता ये जानते थे कि मैं आफरीन हूँ और समानता की एक फैलो हूँ जो स्कूल में बच्चों के साथ काम करती हूँ। मुझे अपना परिचय देने की जरूरत शायद इसलिए भी नही पड़ी क्योंकि बच्चें मेरे द्वारा जो पढ़ाया जाता है उसे घर जाकर पढ़ते है और अपने माता पिता से उस विषय पे चर्चा करते है। इसी में मेरा जिक्र भी जरूर करते होंगे।
माता-पिता ने मुझे कुछ प्रोत्साहित करने वाली बातें कहीं- "जब से आप स्कूल में आई हो, हमारे बच्चे घर आकर किताब खोलने लगे, स्कूल का काम लिखने लगे है। हम तो अनपढ़ है इसीलिए हमे तो इतनी जानकारी एवं समझ भी नही है, लेकिन मेरे बच्चा अब घर पर किताब बहुत शौक से पढ़ता है"।
यह बात जानकर मुझे एक फैलो होने पर गर्व भी महसूस हो रहा था और साथ ही साथ खुशी और अपनी सफलता भी। मेरा मक़सद है कि समाज के सभी बच्चे स्कूल जाए और पढ़े और वो मेरा मकसद पूरा होना शुरू हो गया है। इस प्रकार की चर्चा से मेरी भी समझ बन रही है कि समाज शिक्षा के प्रति कितना जागरूक है और किन समस्याओं से जूझ रहा है।
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