वन पुस्तकालय एक पहल है जो टौंग्या और वन गुज्जर समुदाय से आने वाले बच्चों के साथ काम करती है। इस प्रयास के द्वारा मैं कहानियों को माध्यम बनाकर वन गुज्जर एवं टौंग्या समुदाय के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का काम कर रहा हूँ।
बच्चे और कहानियाँ:
बच्चों के साथ किए जाने वाला प्रत्येक पुस्तकालय का सत्र अपने साथ एक नयी सीख लाता है। उनके लगातार संचालन से बच्चों के आपसी टकराव में कुछ कमी देखने को मिली है। कहानियाँ बच्चों को एक समान देखती है और भेदभाव की सोच को चुनौती देती है। कहानियाँ दोनो समुदाय के बच्चों को साथ लाने का माध्यम बनकर उभरी है। दोनों समुदाय अतीत में अलग अलग ढंग से विकसित हुए है जिसमें वन विभाग का अहम भाग रहा है। वनाधिकारो को लेकर उनका वन विभाग से लम्बे समय का संघर्ष रहा है। अतीत में हुई घटनाओं का बच्चों पर असर इस तरह से देखने को मिला:
१- बच्चों की अलग-अलग कतारो में बैठना।
२- अलग-अलग बैठकर रोटी खाना।
३- एक दूसरे से बात नही करना।
४- आपस में मतभेद होना।
इन सभी परिस्थितियों के बीच कहानियाँ एक सामाजिक जोड़ के रूप में उभरी है। कहानियों के सत्र बच्चों को साथ लाने का काम करने लगी और बातचीत का माहौल पैदा हुआ है। जिन मतभेदों को समाज ने उनके मन में बोया है उन पर कहानियों के द्वारा बात होने लगी है। बच्चे एक दूसरे की बात करते है और एक दूसरे के बारे में अपनी राय बताते है। इस प्रकार उनके मान से काफ़ी चीजें निकल गयी और एक दूसरे को लेकर स्पष्टता आयी है। कहानियाँ उनकी सोच के विपरीत उदाहरण प्रस्तुत करती जिसके फलस्वरूप उनके मन में सवाल आने लगे। यह प्रक्रिया उनके लिए आईने का काम कर रही है। मुझे लगते है यह बदलाव की और एक कदम है और इसका परिणाम सबके हित में होगा। इसका उदाहरण कहानी मुकुंद और रियाज़ से लिया जा सकता है।
(मुकुंद और रियाज़ की कहानी के बाद बच्चे एक साथ किताब को देखते हुए।)
बीते समय में मुझे कई अनोखी चीजें अनुभव करने को मिली है। किताबों और कहानियों के लगातार आदान प्रदान के फलस्वरूप, बच्चों के व्यवहार में भी बदलाव देखने को मिला है।
बच्चों के साथ चर्चा में, मैंने देखा कि अतीत के मुक़ाबले वे कहानियों में ज़्यादा दिलचस्पी दिखा रहे है। कुछ बच्चों को पुरानी कहानियाँ भी याद है एवं उन्ही में से कुछ बच्चे किताबों को घर लेजाकर पढ़ने की इच्छा भी जता चुके है। ऐसी ही एक किताब है ‘दुकान की चाबी-पोंनकुन्न्म वर्की’ जिसकी कहानी बच्चों ने बड़ी दिलचस्पी से सुनी क्योंकि उनके गाँव में भी एक दुकान है। बच्चों और किताबों में बढ़ती दोस्ती देखकर सकारात्मक महसूस होता है।
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