शुरू- शुरू में जब मैं समय पर स्कूल पहुंचता था तो बहुत कम बच्चे स्कूल में समय पर आते थे और मैं बोर भी होता था और साथ ही साथ चिंतित भी क्योंकि मेरा समय कही न कही बर्बाद होता नजर आता था। मैं खुद भी सोचता था कि मैं क्यों इतनी जल्दी स्कूल आ जाता हूँ? जब मैंने यह समस्या की सर और अपनी टीम के साथ चर्चा की तो काफी सुझाव आए। इनमे एक सुझाव था सुबह की प्रार्थना (morning Assembly)। उस दिन सर ने असेंबली के लिए सभी बच्चों को बोला और सुबह समय पर स्कूल आने को कहा। अगले दिन सुबह-सुबह मैं भी जल्दी स्कूल पहुंचा और पाया कि आज पहले के मुकाबले ज्यादा बच्चे स्कूल समय पहुंचे हुए थे। अब मैं ये सोच रहा था कि असेंबली को रोचक कैसे बनाया जाए? इसके लिए स्पीकर में गाने, कविताएं और माइक के साथ प्रार्थना शुरू की गई। मैं कम्युनिटी में जब गया तो पेरेंट्स से मिलते समय मैंने खास तौर पर समय को लेकर उनके साथ चर्चा करी। मेरा उनको कहना था कि 5/10 मिनट देर सवेर तो चलता है पर 1/1.5 घंटा देर नहीं। उन्होंने भी इस बात को माना। असेंबली रोचक बनाने के लिए हमने स्पीकर और कुछ गाने, प्रार्थना, कविताएं डाउनलोड करके सुबह-सुबह स्पीकर में चलाना शुरू किया। अब अधिकतर बच्चे स्कूल समय पर आ जाते है लेकिन सारे अभी भी नहीं आ पाते। ज़्यादा कक्षा 5 के लड़के व लड़कियां देरी से स्कूल पहुँचती है क्योंकि वे शायद घर का काम खत्म करके स्कूल के लिए निकलते होंगे या मदरसे से उन्हे देर से छुट्टी मिलती होगी। जो भी कारण हो इस महीने मैं कम्युनिटी विजिट के दौरान ये ज़रूर जानना चाहूंगा।
By Shoaib
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