इस महीने मेरा अनुभव काफी अच्छा और लर्निंग भरा रहा क्योंकि इस बार मैंने स्कूल में मिडलाइन टेस्ट पूरा किया। टेस्ट हमे बताने में मदद करता है की baseline test के बाद से बच्चो के साथ मैंने जितना काम किया है उसके बाद उनकी लर्निंग कितनी हुई है? हुई भी है या नही? वास्तव में यह मुझे बताता है कि मेरी पद्धति कितनी सफल रही है।
अब बारी आती है midline test लेने की तो हर कक्षा में अलग अलग लेवल के बच्चे है। मैंने पहले बच्चो को लिखित टेस्ट करवाया और जब बच्चो ने लिखित किया फिर उन बच्चो का मौखिक टेस्ट लिया। लिखित में ज्यादातर maths के सवाल थे जिनमे से कुछ सवाल घटाव, जोड़ व भाग के थे। मैंने देखा की अधिकतर बच्चे सिर्फ जोड़ के ही सवाल कर पा रहे है और सबसे कम भाग के सवाल कर पा रहे थे एवं कुछ बच्चे 2 संख्या वाले ही भाग कर पा रहे थे। मैंने जाना की बच्चो को भाग ठीक से समझ नहीं आया है और हम जब समझ के पढ़ने की बात करते है तो वो चीज मुझे कही न कही छूटती हुई नजर आई। सोचने वाली बात यह थी की जिस दिन हमने न्यूमर्सी के प्रोजेक्ट्स किए थे तो बच्चे भाग के सवाल कर पा रहे थे और जब टेस्ट हुआ तो कुछ चीजे ऐसी निकल के आई जो वो कक्षा में कर पा रहे थे लेकिन अब नही कर पा रहे थे। तो मन में एक सवाल उठ रहा था कि जब बच्चे कक्षा में हाँ हाँ करते हुए सिर हिलाते है तो क्या वो सच में एक एक बच्चे के समझ में आती है क्योंकि हर एक बच्चे के सीखने का तरीक़ा अलग अलग हो सकता है।
जब midline assessment पूरा हो गया तो इस प्रोब्लम के solution की तरफ जाते हुए मैंने काम करना शुरू किया और जो बच्चा बार बार प्रैक्टिस करने पे सीखता है उसको उसके हिसाब से प्रैक्टिस करवाई और इसी तरह फिर हमने भाग पर दुबारा फोकस किया। बच्चो को रोज भाग के कांसेप्ट पर बात करके रोज 5 सवाल कक्षा में करने को कहे और 5 सवाल घर से करके लाने को कहा। इससे बच्चे अब ज़्यादा नही लेकिन पहले से कुछ बच्चे भाग के सवाल करना सीख गए है और अब वह खुद ही मेरे पास सवाल लेने आ जाते है और होमवर्क भी रोज करके लाते है। यह देख कर साथ बैठे कक्षा 1 के बच्चे भी सवाल मांगने आते है और अब बच्चे धीरे धीरे भाग के सवालों में रुचि दिखा रहे है।
By Meenakhsi
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