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कहा पढ़ेंगे हम ,हम कहा पढ़ेंगे भई!

Writer: SamantaSamanta



इस महीने जब, स्कूल खुले गर्मियों की छुट्टियों के बाद एक हफ्ता बच्चे स्कूल आए फिर से जो छट्टीया पढ़ने वाली थी उसमे "मेरी कहानी"छुपी हुई थी। जैसे की बच्चे एक महीने की पूरी छुट्टी मनाने के बाद दोबारा से एक हफ्ते की छुट्टियों के लिए भी बड़े खुश थे ।एक हफ्ते की फिर से छुट्टियां मिल रही है लेकिन?हमने भी अपना प्लेन बनाया था , कि अगर ऐसे बच्चो को छुट्टी मिलती रहे तो तो पढ़ाई कब होगी ? बच्चे तो भई बड़े "खुश" छुट्टियां फिर से पढ़ने वाली है!परंतु हमे बच्चो को शिक्षा की ओर भी ले जाना जरूरी है ऐसे दूरी अगर बनती गई तो भई! बच्चे बड़े" खुश" बच्चो की "खुशी" देखनी भी जरूरी है उनकी खुशी का ख्याल रखना भी जरूरी है ! बच्चो के साथ मिलकर हमने प्लेन बनाया की हम इन छुट्टियों में पढ़ेंगे और पढ़ेंगे क्या पीबीएल प्रोजेक्ट्स करेंगे !



बच्चे खुश और हमे क्या ?चाहिए बच्चो की खुशी।अब प्लेन हमने बना लिया केसे बच्चों तक पहुंचे और कहा पढ़ाया जाए। इस बात की भी चर्चा हमने बच्चों से की ! कक्षा 8 से इब्राहिम ने कहा जी मैडम मेरे घर ,उधर से नसीमा बोली कक्षा 7 से जी मेरे यहां!


बच्चें जगह को लेकर उत्सुक हो गए!

"कहा पढ़ेंगे हम ,हम कहा पढ़ेंगे भई,स्कूल में नहीं तो हम कहा पढ़ेंगे भई", चर्चा शुरू हुई चर्चा में अनेक तरह के सुझाव आने लगे मदरसे में ,बैठक ,कही खुली जगह में।


फिर हमने चर्चा को विराम देते हुए बच्चों से कहा हम किसी के घर में ही,पढ़ेंगे परंतु वह जगह शांत सी हो जहा जायदा शोर शराबा न हो हम मजे से पढ़ सके गतिविधि करके अपने आसपास के और जो बच्चे है जो स्कूल नही जाते हमे देख कर उनके मन भी आए कि,हमे भी स्कूल जाना चाहिए हमे भी ऐसे मजेदार तरीके से पढ़ना चाहिए ! क्यूं बच्चों? सही कहा न। ऐसे में जब हम बच्चो को समाज के बीच जाकर पढ़ाने लगे तो,लोगो को भी देखने का मोका मिला क्या पढ़ते है,केसे पढ़ते है।लोगो उत्सुक हुए और खुश भी हुए बच्चो को अपने बीच पढ़ते हुए देख कर। लोगो कि समझ शिक्षा को लेकर खुलने लगी! हमे समाज में जाकर लोगो की क्या समझ है शिक्षा को लेकर क्या सोचते है बच्चे पढ़ने चाहिए या नहीं उनकी खुद समझ हम समझ पाए।



By Aafreen

 
 
 

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