गर्मियों की छुट्टियों के लम्बे अंतराल के बाद आखिर कर स्कूल खुल ही गए। लेकिन ये क्या पहले दिन तो केवल 3 बच्चे ही आए थे। उन्हें देख के लगा जैसे माँ-बाप ने उन्हें जबरदस्ती भेजा हो। स्कूल जाके मुझे समझ आ गया था के यहां आज कुछ नही होने वाला। तो मैं निकल गया बच्चो के बीच, बच्चो को ढूंढने। जो भी बच्चा मिलता उसे बस इतना कहता स्कूल खुल गए है और फिर आगे चल पढ़ता। ऐसे ही 4 सेक्टरों मैं घुमा।
इसका असर ये हुआ की सोमवार को लगभग 60 बच्चे स्कूल आए। एक दो-दिन सब को सैटल होने में लगे और इतने में कावड़ की 10 दिन की छुट्टियां आ गई। बड़ी मुश्किलों से तो अभी सब ठीक होने को आया था और फिर से बच्चो की छुटिया पड़ गई। इस चुनौती का सामना करने के लिए पूरी टीम ने प्लान बनाया की हम सब होम टू होम बच्चो के साथ PBL करेंगे। बच्चो के साथ चर्चा हुई। हमे कोई एक जगह और समय निर्धारित करना था ।जगह और समय निर्धारीत हो गई। हम सबने सुबह 10:30 बजे भोजन माता के यहां मिलने का प्लान बनाया। मैं अपने समय पे वहा पहुँच गया पर ये क्या बच्चे तो मुझसे पहले ही वहा मेरा इंतजार कर रहे थे और जो थोड़े बहुत नही आए थे वो मुझे देख कर स्कूल ड्रेस पहनकर आ गए। मुझे नहीं पता वे सब स्कूल ड्रेस पहनकर क्यों आए थे जब की मैं उनके ही घर पर था पर मुझे उन्हे देख कर खुशी महसूस हुई और साथ ही साथ जिम्मेदारी भी। जिन के घर हम सब PBL कर रहे थे उनके परिवार वाले कब उसमे शामिल हो गए किसी को पता ही नही चला। वह दिन काफी अच्छा गुजरा। मुझे अगले दिन का बेसबरी से इंतजार था लेकिन इस बार के मानसून का कुछ और ही प्लान था। लगातार मूसलाधार बारिश के कारण बस्ती में बाढ़ जैसे हालात बन गए और सब जगह पानी भर गया और हम घर पे फस गए।
लेकिन मुझे बच्चो से मिलने का काफ़ी मन था। मैं फिर भी ऐसी बारिश में बस्ती पहुँच गया। हालात काफी खराब थे, काफी घरों की दीवार कच्ची होने के कारण गिर गई थी। बहुत से घरों में पानी भर गया था। ये सब 1 हफ्ते चला फिर स्कूल खुल गए। इस बार बच्चों से मेरा संपर्क नहीं टूटा था। पहले दिन बच्चे स्कूल नही आ पाए क्योंकि सुबह-सुबह काफी तेज बारिश हो रही थी लेकिन अगले ही दिन काफी बच्चे स्कूल आए।
By Shoaib
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