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दुनियावी तालीम

Writer: SamantaSamanta



मै आमरीन जहां वन गुज्जर समुदाय से हूं ओर इस समुदाय में लड़कियों को शिक्षा का अधिकार नहीं मिलता। अगर किसी को पढ़ाया भी गया तो वह भी उन केन्द्रों में जो संस्थाओं द्वारा खोले गए हो। वहा पर भी बहुत कम लोग अपनी लड़कियों को पढ़ने भेजते। पहले वन गुज्जर समाज के लोगो में केवल दीनी तालीम को जरूरी समझा जाता था ओर दुनियावी तालीम को कोई महत्व नहीं दिया जाता था। परन्तु बदलते दौर के साथ अब दुनियावी तालीम का भी महत्व समझने लगे ओर अब अपने बच्चो को पढ़ने के लिए स्कूल भेजने लगे।


लड़कियों को आज भी उतना अधिकार नहीं मिलता जितना लडको को मिलता है। लड़कियों को केवल पांचवीं या आठवीं तक ही पढ़ाया जाता है ओर उनको अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की बजाए सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाया जाता है। लड़कियों की शिक्षा पर पैसा खर्च करना वयर्थ समझा जाता है। ऐसे समाज से होने के बावजूद और उसी समाज में रहते हुए भी जिस समाज के लोग लड़कियों की शिक्षा को लेकर ऐसी सोच रखते है, मेरे पिता ने मुझे बचपन से ही पढ़ने का अधिकार दिया। हम सभी भाई बहनों को एक समान समझा ओर मेरी बारहवीं तक की पढ़ाई इंग्लिश मीडियम स्कूल से हुई। सभी भाई बहनों की भी। मेरे पिता वन गुज्जर समाज के पहले व्यक्ति है जिन्होंने अपने सभी बच्चो को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाया ओर लड़कियों को लडको से भी ज्यादा शिक्षा का अधिकार दिया। कभी भी लोगो की बातो का असर मेरी शिक्षा पर नहीं पड़ने दिया।


आज भी बहुत कम लोग ऐसे है जो लड़कियों के लिए ऐसी सोच रखते हो ओर लड़कियों की शिक्षा पर पैसे खर्च करते हो। सब कुछ पास होने के बावजूद भी लोग अपने बच्चो को नहीं पढ़ाते। लड़कियों को नहीं पढ़ाते ओर में खुश किस्मत जिसको बारहवीं के बाद भी पढ़ने का अवसर मिला।


जिस दिन पूरे वन गुज्जर समाज के लोगो की सोच लड़कियों की शिक्षा को लेकर मेरे पिता जैसी हो जाएगी। हर माता पिता अपनी बेटियो पर पैसा खर्च करने को व्यर्थ समझना छोड़ देंगे। उस दिन वन गुज्जर समाज किसी अन्य समाज से पिछड़ा नहीं कहलाएगा ओर अपने पिछड़े पन से निजात पा लेगा।

Aamrin


 
 
 

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