फरवरी का महीना मेरे लिए कई नए अनुभव और चुनौतियाँ लेकर आया। लेकिन सच तो यही है कि चुनौतियाँ ही हमें सीखने का अवसर देती हैं। इस महीने मैंने अपने आंगनबाड़ी केंद्र (AWC) में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव देखे, जो मेरे लिए बहुत खास रहे।

एक पिता का विश्वास
एक दिन मेरे AWC में एक भैया आए, जिनकी तीन साल की बेटी थी। उन्होंने मुझसे कहा, "अब हम अपनी बेटी को आंगनबाड़ी भेजना शुरू कर रहे हैं।" उनकी यह बात सुनकर मैं हैरान भी थी और खुश भी।
कुछ समय पहले, जब मैं समुदाय में जाकर जागरूकता फैलाने के लिए उनसे मिली थी, तब उन्होंने AWC आने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि "AWC दूर है, वहाँ रोज़ भेजना मुश्किल होगा।" मैं समझ गई थी कि उन्हें अभी इस केंद्र की ज़रूरत और महत्व का एहसास नहीं हुआ था।
लेकिन समय बदला। जब उन्होंने अपने आसपास के छोटे बच्चों को नियमित रूप से AWC जाते देखा, तो उनकी सोच बदल गई। अब वे खुद अपनी बेटी को हमारे केंद्र में लाने लगे, और उनकी बेटी भी हर दिन खुशी-खुशी आने लगी।
AWC में बढ़ती रौनक
उनकी बेटी के आने के बाद, धीरे-धीरे और भी नए बच्चे जुड़ने लगे। यह देखकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा!
अब तो AWC में पेरेंट्स का भी आना-जाना बढ़ गया। वे अपने बच्चों की पढ़ाई और सीखने की प्रक्रिया के बारे में मुझसे बात करने लगे। कई बार वे AWC की दीवारों पर लगी बच्चों की ड्रॉइंग और आर्टवर्क को देखकर हैरानी से पूछते, "क्या यह सच में बच्चों ने बनाया है?"
जब बच्चे खुद गर्व से अपनी बनाई हुई ड्रॉइंग दिखाते, तो उनके चेहरे की खुशी देखने लायक होती। यह एहसास मुझे और मजबूत बना रहा था कि मैं सही दिशा में आगे बढ़ रही हूँ।
टीएलएम मेले की तैयारी
फरवरी में हमारे लिए एक और बड़ा आयोजन था—TLM मेला। शुरुआत में मैं बहुत उत्साहित थी, लेकिन साथ ही थोड़ी घबराहट भी थी कि यह कैसे होगा, हमें क्या करना होगा?
हमारी पूरी टीम को मिलकर मेले में अपने-अपने स्टॉल लगाने थे। मुझे Physical Development (शारीरिक विकास) से जुड़ा एक टीएलएम (Teaching Learning Material) तैयार करना था। पहले मुझे टीएलएम के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन जैसे-जैसे मैंने इस पर काम किया, मुझे यह बेहतर तरीके से समझ आने लगा।
मेले के दौरान मैंने जाना कि टीएलएम को और अधिक प्रभावी और रोचक कैसे बनाया जा सकता है। पूरी टीम के साथ मिलकर काम करने में बहुत मजा आया और ढेर सारी नई बातें सीखने को मिलीं।
इस महीने मुझे जितना सीखने और अनुभव करने का मौका मिला, उतना मैंने कभी सोचा भी नहीं था। AWC में बदलाव साफ़ दिखने लगे थे—पेरेंट्स अब खुद बच्चों को भेजने पर ज़ोर दे रहे थे। यह मेरे लिए किसी जीत से कम नहीं था।
अब मैंने ठान लिया है कि मैं ऐसे ही मेहनत और कोशिश करती रहूँगी, ताकि हर बच्चा AWC आए, सीखे और आगे बढ़े। साथ ही, मैं भी अपने ज्ञान और कौशल को लगातार विकसित करती रहूँगी, ताकि अपने मकसद को और मजबूती से पूरा कर सकूँ।
By Tanu
Fellow Trainee (SEEDS)
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