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समानता फाउंडेशन में मेरा पहला कदम:थोड़ा डर और थोड़ी उत्सुकता

Writer's picture: SamantaSamanta



हैलो, मेरा नाम मानसी है और मैं श्यामपुर में रहती हूँ। मैंने हाल ही में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया है। समानता फाउंडेशन के बारे में मुझे पहले जानकारी नहीं थी, लेकिन मेरे भाई की मदद से मुझे इसके बारे में पता चला। उनके कहने पर मैंने फ्लाई फेलोशिप का फॉर्म भरा। कुछ समय बाद, मुझे देहरादून में तीन दिन के लिए वर्कशॉप में शामिल होने की सूचना मिली।


जब यह खबर मिली, तो मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वहां कौन-कौन जाएगा, मुझे किसके साथ जाना है, और कितने लोग होंगे। मन में थोड़ा डर भी था, लेकिन साथ ही उत्सुकता भी थी। देहरादून जाने का दिन आया, और सबसे पहले मेरी मुलाकात आमना मैम से हुई। फिर अन्य साथियों से मिलने का मौका मिला। जब हम देहरादून के बोधि ग्राम पहुँचे, तो जगह को देखकर बहुत अच्छा लगा। वहाँ प्रशांत सर, तन्या मैम और मोईन भैया से भी मुलाकात हुई।


बोधि ग्राम मेरे लिए बिल्कुल नई और सुंदर जगह थी। वहाँ हमें एक गेम के जरिए एक-दूसरे को जानने का मौका मिला, जो काफी मजेदार था। इस वर्कशॉप में मुझे फ्लाई फेलोशिप का असली मतलब समझ में आया। हम अक्सर अपने बारे में बहुत गहराई से नहीं सोचते, लेकिन यहाँ आकर मैंने खुद को समझने का मौका पाया। हमने रिवर ऑफ लाइफ और हैंड मॉडल बनाए, जिससे मुझे अपने बारे में कई नई बातें जानने का अवसर मिला।

बोधि ग्राम में हम कुछ ऐसी महिलाओं से भी मिले जिनकी कहानियाँ सुनकर मन में प्रेरणा और जिज्ञासा उत्पन्न हुई। यह समझ में आया कि अगर हम किसी काम को पूरी लगन और मन से करें, तो हम अपने सपनों को सच कर सकते हैं। कुछ भी असंभव नहीं है।


हम देहरादून से ऋषिकेश भी गए, जहाँ हमने गुंज का दौरा किया। वहां जाकर जो हमने देखा, वो हमारे विचारों से परे था। जिन चीज़ों को हम बेकार समझकर फेंक देते हैं, उनका भी रचनात्मक उपयोग हो सकता है। इसके बाद हम फिर से बोधि ग्राम लौटे, जहाँ हमें एक प्रपोजल बनाने का कार्य दिया गया। मोईन भैया ने हमें बहुत सी कहानियाँ सुनाईं और कई चीजें सीखने को मिलीं।


वर्कशॉप से वापस लौटने के कुछ दिनों बाद आमना मैम का कॉल आया। उन्होंने बताया कि मेरा चयन हो गया है और मुझे ऑफिस आना होगा। उस समय मैं बहुत खुश थी, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि ऑफिस कहाँ है या कैसे जाऊँगी। फिर भी, मैं खुशी-खुशी ऑफिस पहुँची और हमने प्रपोजल पर चर्चा की। वहाँ से हमारा काम शुरू हुआ और मैं एक ग्रुप का हिस्सा बनी।


मैंने तीन बच्चों से अपने प्ले स्कूल की शुरुआत की थी, और अब मेरे पास आठ बच्चे हैं। हर हफ्ते हमारी मीटिंग होती है, जहाँ हम अपने काम पर चर्चा करते हैं, वीकली रिपोर्ट्स बनाते हैं और अगले हफ्ते की योजनाएं तय करते हैं। बच्चों को पढ़ाने का काम मैंने कभी सोचा नहीं था, लेकिन अब यह मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं हर दिन कोशिश करती हूँ कि अधिक से अधिक बच्चों को प्ले स्कूल के बारे में जानकारी दूँ और उनकी संख्या बढ़े।

प्रशांत सर भी हाल ही में मेरे प्ले स्कूल का दौरा करने आए थे और उन्होंने मेरे काम की सराहना की। मेरे काम में कई चुनौतियाँ भी आईं। जब मैंने बाहर जाकर लोगों को प्ले स्कूल के बारे में बताया, तो कुछ लोगों ने कहा कि उनके बच्चे आंगनवाड़ी में भी जा सकते हैं और वहाँ कोई फीस नहीं देनी पड़ती। उन्हें समझाना मुश्किल था कि प्ले स्कूल में जो सुविधाएँ मिलती हैं, वो आंगनवाड़ी में नहीं मिल पातीं।


फिर भी, मैं पूरी मेहनत और कोशिश के साथ अपने काम में जुटी रहती हूँ। मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं बच्चों को अच्छी शिक्षा और आदतें सिखाऊं, और उनके माता-पिता को समझाऊं कि यह उनके बच्चों के लिए क्यों जरूरी है। कुछ माता-पिता मेरी बात समझे और कुछ नहीं, लेकिन मैं हार नहीं मानूंगी। मैं इसी लगन के साथ काम करती रहूँगी।


मानसी हल्दिया


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