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सीखने के चरण - एक व्यक्तिगत अनुभव

Writer: SamantaSamanta

मुझे कभी कभी लगता है कि शायद मुस्किले हमे हमेशा कुछ नया सिखाने और कुछ नए नए अनुभव देने ही आती है जो हमे हर दिन बेहतर बनाती है। ऐसे ही कुछ मेरे अनुभव रहे है स्कूल के अंदर क्योंकि मुझे अलग अलग स्कूलों में काम करने का मौका हमेशा से मिलता रहा है। हाल ही में मेरा स्कूल चेंज हुआ था और सुबह स्कूल जाने में बहुत झिजक महसूस कर रही थी। मैंने वृंदा दीदी के साथ प्लान किया था कि वो मेरे साथ जाएंगी लेकिन एक शाम पहले  मुझे पता चला कि वो किसी वजह से नही आ पाएंगी। तो मुझे स्कूल अकेले जाना पड़ेगा। अब मैं सुबह घर से तो निकल गई लेकिन मन में अभी भी डर ही था लेकिन मुझे खुद पे शायद इतना यकीन हो गया था कि जब मैं वहाँ पहुंची तो मुझे टीचर्स और हेडमास्टर से बात करने में जरा भी डर नही लगा। इस स्कूल में स्टाफ काफी था जिस कारण एक दिन में सबसे मिलना नही हो पाया। तो पहले दिन मैं  कुछ क्लासेज के बच्चो से मिली और थोड़ा बहुत उनके बारे में जाना और कुछ अपने बारे में उनको बताया। स्कूल की सबसे बड़ी चुनौती ये रही की स्कूल में 6 से 7 टीचर्स है और कक्षा कुल 5 है। स्कूल में हाफ टाइम तक ही मेरा engagement था जो काफी लिमिटेड टाइम था जिसके चलते मेरे लिए क्लासेज लेना थोड़ा मुस्किल हो गया क्योंकि क्लास में हमेशा टीचर्स अपनी क्लास ले रहे/रही होती थी। अगले दिन मैंने हेडमास्टर से बात करके उनको अपना टाइम टेबल दिखाया जिसे उन्होंने बाक़ी टीचर्स से भी साझा किया। तो इस तरह मुझे क्लासेज मिलने लगी और टीचर्स ने भी इस चीज को समझा और आज मैं टाइम टेबल के अनुशार ही अपना सेशन ले  रही हूँ। इन सारे अनुभवों से मैंने सीखा है कि यदि कुछ सीखना है तो उस कार्य को करने के लिए मन बनाना पहला कदम है, कार्य की चुनौतियों के लड़ना दूसरा और कार्य पूरा करना अंतिम कदम है।



By Meenakshi

 
 
 

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